लेखनी कविता - कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है - फ़िराक़ गोरखपुरी

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कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है / फ़िराक़ गोरखपुरी कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता हमारा ...

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